श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 9: भगवान् कृष्ण की उपस्थिति में भीष्मदेव का देह-त्याग  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  1.9.9 
तान् समेतान् महाभागानुपलभ्य वसूत्तम: ।
पूजयामास धर्मज्ञो देशकालविभागवित् ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
तान्—उन सभी; समेतान्—समवेत; महा-भागान्—अत्यन्त शक्तिशाली पुरुषों को; उपलभ्य—पाकर; वसु-उत्तम:— वसुओं में श्रेष्ठ (भीष्मदेव ने); पूजयाम् आस—स्वागत किया; धर्म-ज्ञ:—धर्म का ज्ञाता; देश—स्थान; काल—समय; विभाग-वित्—जो देश-काल के अनुसार अपने को समंजित कर लेता है ।.
 
अनुवाद
 
 आठ वसुओं में सर्वश्रेष्ठ भीष्मदेव ने वहाँ पर एकत्र हुए समस्त महान् तथा शक्तिसम्पन्न ऋषियों का स्वागत किया, क्योंकि भीष्मदेव को देश तथा काल के अनुसार समस्त धार्मिक नियमों की भलीभाँति जानकारी थी।
 
तात्पर्य
 पटु धर्मज्ञ भलीभाँति जानते हैं कि किस प्रकार देश-काल के अनुसार धार्मिक सिद्धान्तों को समंजित करना चाहिए। सारे महान् आचार्यों अथवा धर्मोपदेशकों अथवा विश्व के सुधारकों ने देश-काल के अनुसार धार्मिक नियमों को समंजित करके ही अपने उद्देश्य को पूरा किया। विश्व के विभिन्न भागों में तरह-तरह की जलवायु तथा परिस्थितियाँ हैं और यदि किसी को भगवान् के संदेश का उपदेश करना है, तो उसे देश-काल के अनुसार बातें समंजित करने में पटु होना चाहिए। भीष्मदेव इस भक्ति सम्प्रदाय का उपदेश करनेवाले बारह महाजनों में से एक थे, अतएव वे ब्रह्माण्ड के कोने-कोने से आये शक्तिशाली ऋषियों का स्वागत तथा सम्मान अपनी मृत्यु-शय्या पर पड़े-पड़े कर सकते थे। निस्संदेह वे उस समय उनका स्वागत-सम्मान स्वयं उठकर कर पाने में शरीर से असमर्थ थे, क्योंकि उस समय वे न तो घर पर थे न सामान्य रूप से स्वस्थ अवस्था में थे। लेकिन वे अपने मस्तिष्क के सुचारु रूप से कार्य करने से बिलकुल चुस्त थे और वे हार्दिक मृदु वचन बोल सके। इसीलिए सभी आगन्तुकों का ठीक से सत्कार हो पाया। मनुष्य मन से, वाणी से तथा कर्म से अपना कर्तव्य पूरा कर सकता है। वे भलीभाँति जानते थे कि उनका किस तरह समुचित स्थान पर उपयोग करना चाहिए। अतएव शारीरिक रूप से असमर्थ होने पर भी उन्हें लोगों का सत्कार करने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥