व्रजे वसन् किमकरोन्मधुपुर्यां च केशव: ।
भ्रातरं चावधीत् कंसं मातुरद्धातदर्हणम् ॥ १० ॥
शब्दार्थ
व्रजे—वृन्दावन में; वसन्—रहते हुए; किम् अकरोत्—उन्होंने क्या किया; मधुपुर्याम्—मथुरा में; च—तथा; केशव:—केशी के संहार करने वाले, कृष्ण ने; भ्रातरम्—भाई; च—तथा; अवधीत्—मारा; कंसम्—कंस को; मातु:—अपनी माता के; अद्धा— प्रत्यक्ष; अ-तत्-अर्हणम्—शास्त्र जिसकी अनुमति नहीं देते ।.
अनुवाद
भगवान् कृष्ण वृन्दावन तथा मथुरा दोनों जगह रहे तो वहाँ उन्होंने क्या किया? उन्होंने अपनी माता के भाई (मामा) कंस को क्यों मारा जबकि शास्त्र ऐसे वध की रंचमात्र भी अनुमति नहीं देते?
तात्पर्य
मामा का पद पिता के तुल्य होता है। मामा के सन्तान न होने पर भाञ्जा ही उसकी संपत्ति का वैध उत्तराधिकारी बनता है।
तो फिर कृष्ण ने अपनी माता के भाई को क्यों मारा? महाराज परीक्षित को ये बातें जानने की अत्यन्त उत्सुकता थी।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥