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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 1: भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार: परिचय  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  10.1.12 
एतदन्यच्च सर्वं मे मुने कृष्णविचेष्टितम् ।
वक्तुमर्हसि सर्वज्ञ श्रद्दधानाय विस्तृतम् ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
एतत्—ये सारी बातें; अन्यत् च—तथा अन्य बातें भी; सर्वम्—सारी बातें; मे—मुझको; मुने—हे मुनि; कृष्ण-विचेष्टितम्— भगवान् कृष्ण के कार्यकलापों को; वक्तुम्—बतलाने में; अर्हसि—समर्थ हैं; सर्व-ज्ञ—सब कुछ जानने वाले; श्रद्दधानाय— श्रद्धावान होने के कारण; विस्तृतम्—विस्तार से ।.
 
अनुवाद
 
 हे महामुनि, आप कृष्ण के विषय में सब कुछ जानते हैं अतएव उन सारे कार्यकलापों का वर्णन विस्तार से करें जिनके बारे में मैंने पूछा है तथा उनके बारे में भी जिनके विषय में मैंने नहीं पूछा क्योंकि उन पर मेरा पूर्ण विश्वास है और मैं उन सबको सुनने के लिए अत्यन्त उत्सुक हूँ।
 
 
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