अनादिरादिर्गोविन्द: सर्वकारणकारणम् ॥ “गोविन्द कहे जाने वाले कृष्ण ही परम नियन्ता हैं। उनका शरीर नित्य, आनन्दमय तथा आध्यात्मिक है। वे सबके उद्गम हैं। उनका कोई अन्य उद्गम नहीं क्योंकि वे समस्त कारणों के कारण हैं।” यस्यैकनिश्वसितकालमथावलम्ब्य जीवन्ति लोमविलजा जगदण्डनाथा:। विष्णुर्महान स इह यस्य कलाविशेषो गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥ “असंख्य ब्रह्माण्डों के प्रधान ब्रह्मागण महाविष्णु के एक श्वास की अवधि के बराबर जीवित रहते हैं। महाविष्णु जिन आदि भगवान् गोविन्द के अंशमात्र हैं, मैं उनकी पूजा करता हूँ।” (ब्रह्म-संहिता ५.४८)। गोविन्द या कृष्ण आदि भगवान् हैं। कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्। यहाँ तक कि वे महाविष्णु, जिनकी श्वास से करोड़ों ब्रह्माण्ड उत्पन्न होते हैं, कृष्ण के कला विशेष अर्थात् अंश के भी अंश हैं। महाविष्णु संकर्षण के अंश (कला) हैं, जो नारायण के अंश हैं। नारायण चतुर्व्यूह के और चतुर्व्यूह कृष्ण के प्रथम प्राकट्य बलदेव के अंश हैं। अत: जब बलदेव समेत कृष्ण आविभूर् त हुए तो उनके साथ सारे के सारे विष्णुतत्त्व प्रकट हुए। महाराज परीक्षित ने शुकदेव गोस्वामी से प्रार्थना की कि वे कृष्ण तथा उनके महिमामय कार्यकलापों का वर्णन करें। इस श्लोक का एक दूसरा भी अर्थ निकलता है। यद्यपि शुकदेव गोस्वामी सबसे बड़े मुनि थे तो भी वे कृष्ण का आंशिक (अंशेन ) वर्णन ही कर सके क्योंकि कृष्ण का पूरा पूरा वर्णन कोई नहीं कर सकता। कहा जाता है कि अनन्तदेव के हजारों सिर हैं और यद्यपि वे अपनी हजारों जीभों से कृष्ण का वर्णन करने का प्रयत्न करते हैं, तो भी यह वर्णन अधूरा ही रहता है। |