श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 10: यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  10.10.1 
श्रीराजोवाच
कथ्यतां भगवन्नेतत्तयो: शापस्य कारणम् ।
यत्तद् विगर्हितं कर्म येन वा देवर्षेस्तम: ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-राजा उवाच—राजा ने आगे पूछा; कथ्यताम्—कृपया कहें; भगवन्—हे परम शक्तिमान; एतत्—यह; तयो:—उन दोनों के; शापस्य—शाप का; कारणम्—कारण; यत्—जो; तत्—वह; विगर्हितम्—निन्दनीय; कर्म—कर्म; येन—जिससे; वा— अथवा; देवर्षे: तम:—नारदमुनि इतने क्रुद्ध हो उठे ।.
 
अनुवाद
 
 राजा परीक्षित ने शुकदेव गोस्वामी से पूछा: हे महान् एवं शक्तिशाली सन्त, नारदमुनि द्वारा नलकूवर तथा मणिग्रीव को शाप दिये जाने का क्या कारण था? उन्होंने ऐसा कौन-सा निन्दनीय कार्य किया कि देवर्षि नारद तक उन पर क्रुद्ध हो उठे? कृपया मुझे कह सुनायें।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥