श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 10: यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  10.10.14 
यथा कण्टकविद्धाङ्गो जन्तोर्नेच्छति तां व्यथाम् ।
जीवसाम्यं गतो लिङ्गैर्न तथाविद्धकण्टक: ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
यथा—जिस प्रकार; कण्टक-विद्ध-अङ्ग:—वह पुरुष जिसका शरीर काँटों से बिंध चुका हो; जन्तो:—ऐसे पशु को; न—नहीं; इच्छति—चाहता है; ताम्—उस; व्यथाम्—पीड़ा को; जीव-साम्यम् गत:—जब वह समझ लेता है कि हर एक की दशा एकसी है; लिङ्गै:—विशेष प्रकार का शरीर धारण करने से; न—नहीं; तथा—उसी तरह; अविद्ध-कण्टक:—जो व्यक्ति काँटों से नहीं बिंधा ।.
 
अनुवाद
 
 जिसके शरीर में काँटे चुभ चुके हैं वह दूसरों के चेहरों को ही देखकर उनकी पीड़ा समझ सकता है कि उन्हें काँटे चुभ रहे हैं। वह यह अनुभव करते हुए कि यह पीड़ा सबों के लिए एकसमान है, यह नहीं चाहता कि अन्य लोग इस तरह से कष्ट भोगें। किन्तु जिसे कभी काँटे गड़े ही नहीं वह इस पीड़ा को नहीं समझ सकता।
 
तात्पर्य
 कहावत है कि “जिसने गरीबी का कष्ट झेला है, वही सम्पत्ति के सुख को भोग सकता है।” एक अन्य कहावत भी है बन्ध्या कि बुझिबे प्रसव-वेदना—“बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा”। वास्तविक अनुभव किये बिना मनुष्य को इस भौतिक जगत में दुख और सुख की अनुभूति नहीं हो पाती। प्रकृति के नियम इसी प्रकार से कार्य करते हैं। यदि किसी ने किसी पशु का वध किया है, तो वह उसी पशु के द्वारा मारा जायेगा। यह मांस कहलाता है। माम् का अर्थ है “मुझको” तथा स का अर्थ है “वह।” जिस तरह मैं पशु को खाता हूँ उसी तरह वह पशु मुझको खाने का अवसर पायेगा। इसीलिए प्रत्येक राज सत्ता में हत्या करने वाले को फाँसी देने का विधान है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥