|
|
|
श्लोक 10.10.26  |
इत्यन्तरेणार्जुनयो: कृष्णस्तु यमयोर्ययौ ।
आत्मनिर्वेशमात्रेण तिर्यग्गतमुलूखलम् ॥ २६ ॥ |
|
शब्दार्थ |
इति—ऐसा निश्चय करके; अन्तरेण—बीच में; अर्जुनयो:—दोनों अर्जुन वृक्षों के; कृष्ण: तु—भगवान् कृष्ण; यमयो: ययौ— दोनों वृक्षों के बीच प्रविष्ट हुए; आत्म-निर्वेश-मात्रेण—घुसते ही; तिर्यक्—तिरछी; गतम्—हो गई; उलूखलम्—ओखली ।. |
|
अनुवाद |
|
इस तरह कह कर कृष्ण तुरन्त ही दो अर्जुन वृक्षों के बीच प्रविष्ट हुए जिससे वह बड़ी ओखली जिससे वे बाँधे गये थे तिरछी हो गई और उनके बीच फँस गई। |
|
|
|
शेयर करें
 |