तत् गच्छतम्—अब तुम दोनों जा सकते हो; मत्-परमौ—मुझे अपने जीवन का परम लक्ष्य मान कर; नलकूवर—हे नलकूवर तथा मणिग्रीव; सादनम्—अपने घर; सञ्जात:—सम्पृक्त; मयि—मुझमें; भाव:—भक्ति; वाम्—तुम्हारे द्वारा; ईप्सित:— अभिलषित; परम:—सर्वोच्च, सारी इन्द्रियों से सदैव संलग्न; अभव:—जिससे जगत में आना न हो ।.
अनुवाद
हे नलकूवर तथा मणिग्रीव, अब तुम दोनों अपने घर वापस जा सकते हो। चूँकि तुम मेरी भक्ति में सदैव लीन रहना चाहते हो अत: मेरे प्रति प्रेम उत्पन्न करने की तुम दोनों की इच्छा पूरी होगी और अब तुम उस पद से कभी भी नीचे नहीं गिरोगे।
तात्पर्य
जीवन की सर्वोच्च सिद्धि है भक्ति-पद को प्राप्त करना और भक्ति कार्यों में सदैव लगे रहना। ऐसा जान कर ही नलकूवर तथा मणिग्रीव ने उस पद को प्राप्त करना चाहा और भगवान् ने उनकी वह दिव्य अभिलाषा पूरी होने का आशीर्वाद दिया।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.