कहा गया है (चैतन्य-चरितामृत मध्य २२.५४) ‘साधुसंग’ ‘साधुसंग’—सर्वशास्त्रे कय। लवमात्र साधुसंगे सर्वसिद्धि हय ॥
नारदमुनि जहाँ भी जाते हैं और जिस मुहूर्त में वे प्रकट होते हैं उसे अत्यन्त शुभ माना जाता है। कहा भी गया है (चैतन्य-चरितामृत मध्य (१९.१५१) ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव।
गुरु-कृष्ण-प्रसादे पाय भक्तिलता-बीज ॥
“सारे जीव अपने अपने कर्मों के अनुसार सारे ब्रह्माण्ड में भटकते रहते हैं। इनमें से कुछ स्वर्ग जाते हैं, तो कुछ नरक जाते हैं। भटकने वाले ऐसे लाखों जीवों में से जो अत्यन्त भाग्यशाली होता है उसे ही कृष्ण की कृपा से प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु का सान्निध्य प्राप्त हो पाता है। कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसे व्यक्ति को भक्तिलता का बीज प्राप्त हो पाता है।” उस बाग में कुवेर के दोनों पुत्रों को भक्ति का बीज प्रदान करने के लिए ही नारद प्रकट हुए, यद्यपि वे दोनों नशे में उन्मत्त थे। सन्त-पुरुष जानते हैं कि पतितात्माओं पर किस तरह कृपा की जाती है।