वनं वृन्दावनं नाम पशव्यं नवकाननम् ।
गोपगोपीगवां सेव्यं पुण्याद्रितृणवीरुधम् ॥ २८ ॥
शब्दार्थ
वनम्—दूसरा वन; वृन्दावनम् नाम—वृन्दावन नामक; पशव्यम्—गौवों तथा अन्य पशुओं के पालन के लिए उपयुक्त स्थान; नव-काननम्—कई नये बगीचों जैसे स्थान हैं; गोप-गोपी-गवाम्—सारे ग्वालों, उनके परिवार वालों तथा गौवों के लिए; सेव्यम्—अत्यन्त उपयुक्त स्थान; पुण्य-अद्रि—सुन्दर पर्वत हैं; तृण—पौधे; वीरुधम्—तथा लताएँ ।.
अनुवाद
नन्देश्वर तथा महावन के मध्य वृन्दावन नामक एक स्थान है। यह स्थान अत्यन्त उपयुक्त है क्योंकि इसमें गौवों तथा अन्य पशुओं के लिए रसीली घास, पौधे तथा लताएँ हैं। वहाँ सुन्दर बगीचे तथा ऊँचे पर्वत हैं और वह स्थान गोपों, गोपियों तथा हमारे पशुओं के सुख के लिए सारी सुविधाओं से युक्त है।
तात्पर्य
वृन्दावन वह स्थान है, जो नन्देश्वर तथा महावन के बीच में है। पहले ग्वाले महावन चले गये थे फिर भी उत्पात
होते रहते थे। अत: ग्वालों ने वृन्दावन को चुना जो दो गाँवों के बीच है और वहीं जाने का निश्चय किया।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥