शृणुष्वावहितो राजन्नपि गुह्यं वदामि ते ।
ब्रूयु: स्निग्धस्य शिष्यस्य गुरवो गुह्यमप्युत ॥ ३ ॥
शब्दार्थ
शृणुस्व—कृपया सुनें; अवहित:—ध्यानपूर्वक; राजन्—हे राजा (महाराज परीक्षित); अपि—यद्यपि; गुह्यम्—अत्यन्त गोपनीय (क्योंकि सामान्य व्यक्ति कृष्ण-लीलाओं को नहीं समझ सकते); वदामि—मैं कहूँगा; ते—तुमसे; ब्रूयु:—बताते हैं; स्निग्धस्य—विनीत; शिष्यस्य—शिष्य के; गुरव:—गुरुजन; गुह्यम्—अत्यन्त गोपनीय; अपि उत—ऐसा होने पर भी ।.
अनुवाद
हे राजन्, मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनें। यद्यपि भगवान् की लीलाएँ अत्यन्त गुह्य हैं और सामान्य व्यक्ति उन्हें नहीं समझ सकता किन्तु मैं तुमसे उनके विषय में कहूँगा क्योंकि गुरुजन विनीत शिष्य को गुह्य से गुह्य तथा कठिन से कठिन विषयों को भी बता देते हैं।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥