यावन्तो गोकुले बाला: सवत्सा: सर्व एव हि ।
मायाशये शयाना मे नाद्यापि पुनरुत्थिता: ॥ ४१ ॥
शब्दार्थ
यावन्त:—उतने ही; गोकुले—गोकुल में; बाला:—बालक; स-वत्सा:—अपने अपने बछड़ों के साथ; सर्वे—सभी; एव— निस्सन्देह; हि—क्योंकि; माया-आशये—माया की सेज पर; शयाना:—सो रहे हैं; मे—मेरी; न—नहीं; अद्य—आज; अपि— भी; पुन:—फिर से; उत्थिता:—उठे हैं ।.
अनुवाद
भगवान् ब्रह्मा ने सोचा: गोकुल के जितने भी बालक तथा बछड़े थे उन्हें मैंने अपनी योगशक्ति की सेज पर सुला रखा है और आज के दिन तक वे जगे नहीं हैं।
तात्पर्य
ब्रह्माजी ने अपनी योगशक्ति से सारे बछड़ों तथा बालकों को गुफा में एक वर्ष तक सुला रखा था। अत: जब ब्रह्मा ने अब भी भगवान् कृष्ण को सारी गौवों तथा बछड़ों के साथ खेलते देखा तो जो कुछ हो रहा था वे उसका कारण जानने का प्रयास करने लगे। उन्होंने सोचा, “यह क्या है? हो सकता है कि मैं जिन बछड़ों तथा ग्वालों को चुरा ले गया था वे ही गुफा से पुन: यहाँ पर ला दिये गये हों। क्या ऐसा ही हुआ है? क्या कृष्ण उन्हें वापस ले आया है?” किन्तु फिर ब्रह्माजी ने देखा कि जिन बछड़ों तथा बालकों
को वे चुरा ले गये थे वे अब भी उसी योगमाया में हैं जिनमें उन्हें रखा गया था। अत: उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि कृष्ण के साथ अब खेल रहे बछड़े तथा ग्वालबाल गुफा वाले बछड़ों तथा बालकों से भिन्न हैं। वे समझ गये कि असली बछड़े तथा बालक गुफा में ही हैं जहाँ वे उन्हें रख आये थे किन्तु कृष्ण ने अपना विस्तार कर लिया है और सामने दिखने वाले ये बछड़े तथा बालक उन्हीं के अंश हैं। इन अंशों के वैसे ही स्वरूप थे, वही प्रवृत्ति और वही विचारधारा थी किन्तु थे वे भी कृष्ण ही।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥