ब्रह्मा ने उन कृष्ण को मोहित करना चाहा जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को मोहित करते हैं। सारा ब्रह्माण्ड कृष्ण की योगशक्ति के अधीन है (मम माया दुरत्यया ) किन्तु ब्रह्मा ने उन्हें ही मोहित करना चाहा। इसका परिणाम यह हुआ कि ब्रह्मा स्वयं मोहित हो गये जिस तरह कि किसी अन्य को मारने का इच्छुक व्यक्ति स्वयं मार डाला जाय। दूसरे शब्दों में, ब्रह्मा अपनी ही चाल से पराजित हो गये। ऐसी ही स्थिति उन वैज्ञानिकों तथा दार्शनिकों की है, जो कृष्ण की योगशक्ति पर विजय पाना चाहते हैं। वे यह कह कर कृष्ण को ललकारते हैं, “ईश्वर क्या है? हम यह कर सकते हैं, हम वह कर सकते हैं।” किन्तु वे जितना ही अधिक कृष्ण को ललकारते हैं उतना ही अधिक कष्ट पाते हैं। हमें यहाँ यही शिक्षा मिलती है कि हम कृष्ण को पछाडऩे का प्रयत्न न करें। उन्हें पछाडऩे का प्रयास करने के बजाय हम उनकी शरण में जाँय (सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज )। ब्रह्मा चाहते थे कृष्ण को हराना किन्तु स्वयं हार गये क्योंकि वे यह नहीं जान पाये कि कृष्ण क्या कर रहे हैं। जब इस ब्रह्माण्ड के मुख्य पुरुष ब्रह्मा इस तरह मोहित हों तो फिर तथाकथित वैज्ञानिकों तथा दार्शनिकों के विषय में क्या कहा जाये? सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। हमें चाहिए कि कृष्ण की व्यवस्था की अवज्ञा करने वाले अपने लघु प्रयासों को हम त्याग दें। हमें चाहिए कि वे जैसी व्यवस्था करें उसे हम स्वीकार कर लें। यह सदैव श्रेयस्कर होता है क्योंकि इससे हम सुखी बन सकेंगे। हम उनकी व्यवस्था को पराजित करने का जितना ही अधिक प्रयास करेंगे उतना ही अधिक कृष्ण की माया में फँसते जायेंगे (दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ) किन्तु जो व्यक्ति भगवान् कृष्ण के आदेशों को मान कर शरण में जाते हैं (मामेव ये प्रपद्यन्ते ) वे कृष्ण-माया से छूट जाते हैं (मायाम् एतां तरन्ति ते )। कृष्ण की शक्ति उस सरकारी शक्ति के समान है, जिसे जीता नहीं जा सकता। सर्वप्रथम सरकार के नियम होते हैं, तब पुलिस बल होता है और उसके ऊपर सैन्य बल होता है। अतएव सरकारी बल को पराजित करने से क्या लाभ? इसी तरह कृष्ण को ललकारने से क्या लाभ? अगले श्लोक से स्पष्ट हो जायेगा कि कृष्ण को किसी भी प्रकार की माया-शक्ति से पराजित नहीं किया जा सकता। यदि किसी को थोड़ी भी वैज्ञानिक ज्ञान की शक्ति प्राप्त हो जाती है, तो वह ईश्वर की अवज्ञा करने का प्रयत्न करता है किन्तु कृष्ण को मोहित करने में कोई भी समर्थ नहीं होता। जब इस ब्रह्माण्ड के प्रधान पुरुष ब्रह्मा ने कृष्ण को मोहित करना चाहा तो वे स्वयं मोहित और आश्चर्यचकित हो गये। बद्धजीव की स्थिति ऐसी ही है। ब्रह्मा कृष्ण को मोहित करने चले तो स्वयं मोहित हो गये।
इस श्लोक में विष्णु शब्द महत्त्वपूर्ण है। विष्णु सम्पूर्ण भौतिक संसार में व्याप्त हैं किन्तु ब्रह्मा उनके अधीन एक पद पर नियुक्त हैं।
यस्यैकनिश्वसितकालमथावलम्ब्य जीवन्ति लोमविलजा जगदण्डनाथा: ॥
(ब्रह्म-संहिता ५.४८) नाथा: शब्द ब्रह्माजी के लिए आया है किन्तु है बहुवचन में क्योंकि ब्रह्माण्ड असंख्य हैं और ब्रह्मा भी असंख्य हैं। ब्रह्मा तो एक क्षुद्र शक्ति मात्र हैं। इस तथ्य का प्राकट्य द्वारका में हुआ था जब कृष्ण ने ब्रह्मा को बुला भेजा था। एक दिन जबब्रह्मा कृष्ण का दर्शन करने द्वारका आये तो द्वारपाल ने भगवान् कृष्ण के आदेश से यह पूछा, “आप कौन से ब्रह्मा हैं?” बाद में जब ब्रह्मा ने कृष्ण से पूछा कि क्या इसका अर्थ यह है कि हमारे अतिरिक्त और भी ब्रह्मा हैं, तो कृष्ण मुसकाये और तुरन्त ही अनेक ब्रह्माण्डों के अनेक ब्रह्माओं को बुला भेजा। तब इस ब्रह्माण्ड के चतुरानन ब्रह्मा ने कृष्ण के पास असंख्य अन्य ब्रह्माओं को आते और कृष्ण को नमस्कार करते देखा। उनमें से कुछ के दस सिर थे, किसी के बीस, किसी के सौ और किसी के लाख लाख। यह अद्भुत दृश्य देख कर चतुरानन ब्रह्मा शिथिल हो गये और अपने को अनेक हाथियों के बीच में एक क्षुद्र मच्छर के बराबर समझने लगे। अत: ब्रह्मा कृष्ण को मोहित करके क्या कर सकते हैं?