एकले ईश्वर कृष्ण, आर सब भृत्य। यारे यैछे नाचाय, से तैछे करे नृत्य ॥ “केवल कृष्ण सर्वोच्च प्रभु हैं, शेष सभी लोग उनके दास हैं। कृष्ण जैसा चाहते हैं उसी के अनुसार हर व्यक्ति नाचता है।” (चैतन्य चरितामृत आदि ५.१४२)। जीव दो प्रकार के हैं—चर तथा अचर। उदाहरणार्थ, वृक्ष एक स्थान पर खड़े रहते हैं जबकि चींटियाँ चलती-फिरती हैं। ब्रह्मा ने देखा कि क्षुद्र से क्षुद्र प्राणी भी विभिन्न रूप धारण करके भगवान् विष्णु की सेवा में लगे हुए हैं। जो जिस विधि से भगवान् की पूजा करता है, उसी के अनुसार उसे रूप मिलता है। भौतिक जगत में जीव को जो शरीर मिलता है, वह देवताओं द्वारा नियंत्रित होता है। इसी को कभी कभी नक्षत्रों का प्रभाव कहा जाता है। भगवद्गीता (३.२७) में इसे ही प्रकृते: क्रियमाणानि शब्दों के द्वारा सूचित किया गया है, जिसका अर्थ है कि प्रकृति के नियमानुसार प्राणी का नियंत्रण देवताओं द्वारा होता है। सारे जीव कृष्ण की सेवा विविध प्रकारों से करते हैं किन्तु जब वे कृष्णभावनाभावित रहते हैं, तो उनकी सेवा पूरी तरह प्रकट होती है। जिस प्रकार कली में छिपा फूल क्रमश: खिल कर अपनी सुगन्ध तथा सुन्दरता बिखेरता है उसी तरह जब जीव कृष्णभावनामृत पद तक पहुँच जाता है, तो उसके असली स्वरूप का सौन्दर्य पूरी तरह खिल उठता है। यही चरम सौन्दर्य तथा चरम इच्छापूर्ति है। |