अद्वयम् शब्द भी महत्त्वपूर्ण है। इसका अर्थ है “अद्वितीय।” चूँकि ब्रह्मा कृष्ण की माया से आच्छादित थे अतएव वे अपने को सर्वोच्च मान रहे थे। भौतिक जगत में प्रत्येक व्यक्ति सोचता है, “मैं इस जगत का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हूँ। मैं सब जानता हूँ।” वह सोचता है, “मैं भगवद्गीता क्यों पढूँ? मुझे सब आता है। मेरी अपनी व्याख्या है।” किन्तु ब्रह्मा यह जान गये कि परम पुरुष तो कृष्ण हैं। ईश्वर: परम: कृष्ण:। इससे कृष्ण का अन्य नाम परमेश्वर भी है। अब ब्रह्मा ने भगवान् कृष्ण को वृन्दावन में ग्वालबाल के रूप में प्रकट होते देखा जहाँ वे अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन नहीं कर रहे थे अपितु अपने हाथ में भोजन लिए, अपने मित्रों, बछड़ों तथा गौवों के साथ इधर-उधर घूमने वाले अबोध बालक के रूप में खड़े थे। ब्रह्मा ने कृष्ण को चतुर्भुज ऐश्वर्यपूर्ण नारायण के रूप में नहीं अपितु अबोध बालक के रूप में देखा। फिर भी वे समझ गये कि यद्यपि कृष्ण अपनी शक्ति प्रदर्शित नहीं कर रहे थे किन्तु हैं, वे वही परम पुरुष। लोग सामान्यतया किसी को तब तक सम्मान नहीं देते जब तक वह कोई अद्भुत कार्य न कर दिखाये किन्तु यहाँ पर यद्यपि कृष्ण कोई अद्भुत कार्य नहीं दिखला रहे थे तब भी ब्रह्मा जान गये कि वे वही अद्भुत व्यक्ति, सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी होने पर भी एक अबोध बालक के रूप में उपस्थित हैं। अत: ब्रह्मा ने स्तुति की— गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि—हे आदि-पुरुष, आप सभी वस्तुओं के कारण हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ। यह उनकी अनुभूति थी। तमहं भजामि। यही इष्ट वस्तु है। वेदेषु दुर्लभम्—मात्र वैदिक ज्ञान द्वारा कृष्ण तक नहीं पहुँचा जा सकता। अदुर्लभम् आत्मभक्तौ—किन्तु भक्त बन जाने पर मनुष्य उनका अनुभव कर सकता है। अत: ब्रह्माजी उनके भक्त बन गये। प्रारम्भ में उन्हें ब्रह्माण्ड का स्वामी होने का गर्व था किन्तु अब वे समझ चुके थे कि ब्रह्माण्ड के स्वामी तो ये (कृष्ण) हैं। मैं तो एक क्षुद्र प्रतिनिधि हूँ। गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि। कृष्ण नाटक के एक पात्र की तरह कार्य कर रहे थे। चूँकि ब्रह्मा को यह सोच कर कि उनके पास कुछ शक्ति है मिथ्या प्रतिष्ठा का भ्रम हो गया था अत: कृष्ण ने उन्हें उनकी असली स्थिति दिखला दी। ऐसी ही घटना तब घटी जब ब्रह्माजी कृष्ण से भेंट करने द्वारका गये। जब कृष्णजी के द्वारपाल ने सूचना दी कि ब्रह्माजी आये हैं, तो कृष्ण ने पूछा, “कौन से ब्रह्मा? उनसे पूछो कौन से ब्रह्मा?” द्वारपाल ने जाकर यही प्रश्न पूछा तो ब्रह्माजी चकित रह गये। उन्होंने सोचा, “क्या मेरे अतिरिक्त भी कोई अन्य ब्रह्मा है?” जब द्वारपाल ने जाकर सूचित किया कि “चतुरानन ब्रह्मा आये हैं” तो भगवान् कृष्ण ने कहा, “अरे! चतुरानन! दूसरों को भी बुलाओ और चतुरानन को दिखाओ।” यह है कृष्ण की स्थिति। कृष्ण के लिए चतुरानन ब्रह्मा महत्त्वहीन हैं, तो भला “चार सिर वाले वैज्ञानिकों” की क्या बिसात! भौतिकतावादी वैज्ञानिक सोचते हैं कि यह पृथ्वीलोक तो सारे ऐश्वर्य से पूर्ण है किन्तु अन्य लोक रिक्त हैं। चूँकि वे केवल सोचते हैं इसलिए उनका यह वैज्ञानिक निष्कर्ष निकलता है। किन्तु भागवत से हम जानते हैं कि सारा ब्रह्माण्ड जीवों से पूरित है। यह तो वैज्ञानिकों की मूर्खता है कि वे कुछ भी न जानते हुए अपने को वैज्ञानिक, दार्शनिक तथा ज्ञानी मानते हुए लोगों को भ्रान्त करते हैं। |