एवं निगूढात्मगति: स्वमायया
गोपात्मजत्वं चरितैर्विडम्बयन् ।
रेमे रमालालितपादपल्लवो
ग्राम्यै: समं ग्राम्यवदीशचेष्टित: ॥ १९ ॥
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; निगूढ—छिपाया हुआ; आत्म-गति:—निजी ऐश्वर्य; स्व-मायया—अपनी ही योग शक्ति से; गोप- आत्मजत्वम्—ग्वाले का पुत्रत्व; चरितै:—अपने कार्यकलापों से; विडम्बयन्—बहाना करते हुए; रेमे—आनन्द लिया; रमा— लक्ष्मीजी द्वारा; लालित—सेवित; पाद-पल्लव:—कोमल नवीन कली जैसे पाँव; ग्राम्यै: समम्—ग्रामीण लोगों के साथ; ग्राम्य वत्—ग्रामीण पुरुष की भाँति; ईश-चेष्टित:—भगवान् के अद्वितीय कार्य भी प्रदर्शित करते हुए ।.
अनुवाद
इस तरह भगवान् जिनके कोमल चरणकमलों की सेवा लक्ष्मीजी स्वयं करती हैं, अपनी अन्तरंगा शक्ति के द्वारा अपने दिव्य ऐश्वर्य को छिपा कर ग्वालपुत्र की तरह कार्य करते। अन्य ग्रामवासियों के साथ ग्रामीण बालक की भाँति विचरण करते हुए वे कभी कभी ऐसे करतब दिखलाते जो केवल ईश्वर ही कर सकता है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥