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श्लोक |
बल: प्रविश्य बाहुभ्यां तालान् सम्परिकम्पयन् ।
फलानि पातयामास मतङ्गज इवौजसा ॥ २८ ॥ |
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शब्दार्थ |
बल:—बलराम ने; प्रविश्य—घुस कर; बाहुभ्याम्—अपनी दोनों भुजाओं से; तालान्—ताड़ वृक्षों को; सम्परिकम्पयन्— झकझोरते हुए; फलानि—फलों को; पातयाम् आस—गिरा दिया; मतम्-गज:—मतवाला हाथी; इव—सदृश; ओजसा—अपने बल से ।. |
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अनुवाद |
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भगवान् बलराम सबसे पहले तालवन में प्रविष्ट हुए। तब अपने दोनों हाथों से मतवाले हाथी का बल लगाकर वृक्षों को हिलाने लगे जिससे ताड़ के फल भूमि पर आ गिरें। |
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