श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 17: कालिय का इतिहास  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.17.11 
अत्र प्रविश्य गरुडो यदि मत्स्यान् स खादति ।
सद्य: प्राणैर्वियुज्येत सत्यमेतद् ब्रवीम्यहम् ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
अत्र—इस सरोवर में; प्रविश्य—घुसकर; गरुड:—गरुड़; यदि—यदि; मत्स्यान्—मछलियों को; स:—वह; खादति—खाता है; सद्य:—तुरन्त; प्राणै:—प्राणों से; वियुज्येत—हाथ धोना पड़ता; सत्यम्—सही सही; एतत्—यह; ब्रवीमि—कह रहा हूँ; अहम्—मैं ।.
 
अनुवाद
 
 “यदि गरुड़ ने फिर कभी इस सरोवर में घुसकर मछलियाँ खाईं तो वह तुरन्त अपने प्राणों से हाथ धो बैठेगा। मैं जो कह रहा हूँ वह सत्य है।”
 
तात्पर्य
 इस प्रसंग में आचार्यों की व्याख्या यह है कि सौभरि मुनि ने मछली के प्रति भौतिक अनुरक्ति एवं स्नेह के कारण, स्थिति पर आध्यात्मिक दृष्टि से विचार नहीं किया। श्रीमद्भागवत के नवें स्कंध में इसी अपराध के कारण उनका पतन दिखलाया गया है। मिथ्या दम्भ के कारण सौभरि मुनि की तपोशक्ति जाती रही और इसी के साथ उनका आध्यात्मिक सौन्दर्य तथा सुख भी। जब गरुड़ यमुना नदी में आया तो सौभरि मुनि ने सोचा, “वह भले ही भगवान् का निजी पार्षद क्यों न हो मैं उसे शाप देकर रहूँगा और यदि मेरे आदेश का पालन नहीं करेगा तो मार भी डालूँगा।” किसी प्रतिष्ठित वैष्णव के विरुद्ध ऐसा आक्रामक रवैया जीवन में किसी के भी पवित्र पद को निस्सन्देह विनष्ट कर देगा।

नवें स्कन्ध में बतलाया गया है कि सौभरि मुनि ने अनेक सुन्दर स्त्रियों से विवाह किया और उनकी संगति से भारी कष्ट सहे। किन्तु चूँकि उन्होंने वृन्दावन में यमुना की शरण ले रखी थी इसलिए उन्हें ख्याति प्राप्त हो गई और अन्त में उनका उद्धार हो गया।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥