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श्लोक 10.17.12  |
तत् कालिय: परं वेद नान्य: कश्चन लेलिह: ।
अवात्सीद् गरुडाद् भीत: कृष्णेन च विवासित: ॥ १२ ॥ |
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शब्दार्थ |
तम्—वह; कालिय:—कालिय; परम्—एकमात्र; वेद—जानता था; न—नहीं; अन्य:—दूसरा; कश्चन—कोई; लेलिह:—सर्प; अवात्सीत्—रहता था; गरुडात्—गरुड़ से; भीत:—भयभीत; कृष्णेन—कृष्ण द्वारा; च—तथा; विवासित:—निकाला गया ।. |
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अनुवाद |
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सारे सर्पों में केवल कालिय ही इस बात को जानता था और गरुड़ के भय से उसने यमुना के सरोवर में अपना निवास बना रखा था। बाद में कृष्ण ने उसे निकाल भगाया। |
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