शुकदेव गोस्वामी ने कहा : गरुड़ द्वारा खाये जाने से बचने के लिए सर्पों ने पहले से उससे यह समझौता कर रखा था कि उनमें से हर सर्प मास में एक बार अपनी भेंट लाकर वृक्ष के नीचे रख जाया करेगा। इस तरह हे महाबाहु परीक्षित, प्रत्येक मास हर सर्प अपनी रक्षा के मूल्य के रूप में विष्णु के शक्तिशाली वाहन को अपनी भेंट चड़ाया जाया करता था।
तात्पर्य
श्रील श्रीधर स्वामी ने इस श्लोक की एक दूसरी भी व्याख्या दी है। उपहार्यै शब्द का एक दूसरा अर्थ भी किया जा सकता है “जिन्हें खाया जाना है उनके द्वारा।” इसी तरह सर्प-जनै का अर्थ है “वे मनुष्य जो सर्प जाति के अधीन थे या उससे सम्बन्धित थे।” इस पाठ के अनुसार, मनुष्यों का एक समुदाय सर्पों के अधीन हो गया था और उनके द्वारा खाये जा सकते थे। इससे बचने के लिए ये लोग सर्पों को मासिक भेंट चढ़ाते थे जिसमें से एक अंश वे गरुड़ को देते थे ताकि वह उन्हें न खा जाय। यहाँ जो विशेष अर्थ प्रस्तुत किया गया है, वह श्रील सनातन गोस्वामी की टीका तथा श्रील प्रभुपाद द्वारा ‘भगवान् कृष्ण’ नामक ग्रन्थ के पर आधारित है। हर हालत में, सारे आचार्यों में मतैक्य है कि सर्पों ने गरुड़ से सुरक्षा मोल ले रखी थी।
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