श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 17: कालिय का इतिहास  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.17.7 
तं तार्क्ष्यपुत्र: स निरस्य मन्युमान्
प्रचण्डवेगो मधुसूदनासन: ।
पक्षेण सव्येन हिरण्यरोचिषा
जघान कद्रुसुतमुग्रविक्रम: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उस कालिय को; तार्क्ष्य-पुत्र:—कश्यप का पुत्र; स:—वह गरुड़; निरस्य—झटककर; मन्यु-मान्—क्रोध से भरा; प्रचण्ड-वेग:—अत्यन्त तेजी से, गति करते हुए; मधुसूदन-आसन:—मधुसूदन कृष्ण का वाहन; पक्षेण—अपने पंख से; सव्येन—बाएँ; हिरण्य—स्वर्ण जैसे; रोचिषा—तेज वाले; जघान—वार किया; कद्रु-सुतम्—कद्रु-पुत्र (कालिय) पर; उग्र— प्रचणड; विक्रम:—पराक्रम ।.
 
अनुवाद
 
 तार्क्ष्य का क्रुद्ध पुत्र कालिय के वार को पीछे धकेलने के लिए प्रचंड वेग से आगे बढ़ा। उस अत्यन्त शक्तिशाली भगवान् मधुसूदन के वाहन ने कद्रु के पुत्र पर अपने स्वर्ण जैसे चमकीले बाएँ पंख से प्रहार किया।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥