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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 18: भगवान् बलराम द्वारा प्रलम्बासुर का वध  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  10.18.10 
कृष्णस्य नृत्यत: केचिज्जगु: केचिदवादयन् ।
वेणुपाणितलै: श‍ृङ्गै: प्रशशंसुरथापरे ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
कृष्णस्य नृत्यत:—कृष्ण के नाचते समय; केचित्—उनमें से कोई; जगु:—गाने लगा; केचित्—कोई; अवादयन्—बजाने लगा; वेणु—वंशी; पाणि-तलै:—खड़ तालियों से; शृङ्गै:—सींग से; प्रशशंसु:—प्रशंसा (वाहवाही) करने लगे; अथ—तथा; अपरे—अन्य लोग ।.
 
अनुवाद
 
 जब कृष्ण नाचने लगे तो कुछ बालक गाकर और कुछ बाँसुरी, हाथ के मंजीरे तथा भैसों के सींग बजा बजाकर उनका साथ देने लगे तथा कुछ अन्य बालक उनके नाच की प्रशंसा करने लगे।
 
तात्पर्य
 श्रीकृष्ण को प्रोत्साहन देने की इच्छा से कुछ ग्वालबालों ने उनके नाच की खुल कर प्रशंसा की।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥