गोपजातिप्रतिच्छन्ना देवा गोपालरूपिणौ ।
ईडिरे कृष्णरामौ च नटा इव नटं नृप ॥ ११ ॥
शब्दार्थ
गोप-जाति—ग्वालों की जाति के सदस्यों के रूप में; प्रतिच्छन्ना:—वेश बनाये; देवा:—देवताओं ने; गोपाल-रूपिणौ— ग्वालबालों का रूप धारण किये; ईडिरे—पूजा की; कृष्ण-रामौ—कृष्ण तथा बलराम की; च—तथा; नटा:—पेशेवर नर्तकों; इव—सदृश; नटम्—अन्य नर्तक; नृप—हे राजन् ।.
अनुवाद
हे राजन्, देवताओं ने गोप जाति के सदस्यों का वेश बनाया और जिस तरह नाटक के नर्तक दूसरे नर्तक की प्रशंसा करते हैं उसी तरह उन्होंने ग्वालबालों के रूप में प्रकट हुए कृष्ण तथा बलराम की पूजा की।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥