क्वचिच्च दर्दुरप्लावैर्विविधैरुपहासकै: ।
कदाचित् स्यन्दोलिकया कर्हिचिन्नृपचेष्टया ॥ १५ ॥
शब्दार्थ
क्वचित्—कभी कभी; च—तथा; दर्दुर—मेढकों की तरह; प्लावै:—कूद कर; विविधै:—अनेक प्रकार के; उपहासकै:— ठिठोलियों से; कदाचित्—कभी कभी; स्यन्दोलिकया—झूले में पेंग मार कर; कर्हिचित्—कभी कभी; नृप-चेष्टया—राजा की नकल करके ।.
अनुवाद
कभी कभी वे मेढक़ों की तरह फुदक फुदक कर चलते, कभी तरह तरह के हास परिहास करते, कभी झूले में झूलते और कभी राजाओं की नकल उतारते।
तात्पर्य
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ने नृपचेष्टया शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है : वृन्दावन में एक स्थान था, जहाँ पर यमुना को पार करने वालों को थोड़ा-सा कर देना पड़ता
था। कभी कभी ग्वालबाल इस स्थान पर एकत्र होकर वृन्दावन की तरुण गोपियों को नदी पार करने से पहले कर देने के लिए बाध्य करते। ऐसे कार्य हँसी-मजाक से भरे होते थे।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥