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श्लोक |
एवं तौ लोकसिद्धाभि: क्रीडाभिश्चेरतुर्वने ।
नद्यद्रिद्रोणिकुञ्जेषु काननेषु सर:सु च ॥ १६ ॥ |
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शब्दार्थ |
एवम्—इस प्रकार से; तौ—वे दोनों, कृष्ण तथा बलराम; लोक-सिद्धाभि:—मानव समाज में भली भाँति ज्ञात; क्रीडाभि:— क्रीड़ाओं से; चेरतु:—घूमते हुए; वने—जंगल में; नदी—नदियों; अद्रि—पर्वतों; द्रोणि—घाटियों; कुञ्जेषु—तथा कुंजों के बीच; काननेषु—छोटे जंगलों में; सर:सु—सरोवरों के किनारे; च—तथा ।. |
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अनुवाद |
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इस तरह से कृष्ण तथा बलराम वृन्दावन की नदियों, पर्वतों, घाटियों, कुंजों, वृक्षों तथा सरोवरों के बीच घूमते हुए सभी प्रकार के प्रसिद्ध खेल खेलते रहते। |
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