व्रजे विक्रीडतोरेवं गोपालच्छद्ममायया ।
ग्रीष्मो नामर्तुरभवन्नातिप्रेयाञ्छरीरिणाम् ॥ २ ॥
शब्दार्थ
व्रजे—वृन्दावन में; विक्रीडतो:—दोनों के खेलते हुए; एवम्—इस प्रकार; गोपाल—ग्वालबालों का; छद्म—वेश बनाकर; मायया—माया द्वारा; ग्रीष्म:—गर्मी; नाम—नामक; ऋतु:—ऋतु; अभवत्—आ गई; न—नहीं; अति-प्रेयान्—अत्यधिक अनुकूल; शरीरिणाम्—देहधारियों के लिए ।.
अनुवाद
जब कृष्ण तथा बलराम इस तरह से सामान्य ग्वालबालों के वेश में वृन्दावन में जीवन का आनन्द ले रहे थे तो शनै-शनै ग्रीष्म ऋतु आ गई। यह ऋतु देहधारियों को अधिक सुहावनी नहीं लगती।
तात्पर्य
श्रील प्रभुपाद ने भगवान् श्रीकृष्ण (भाग १ अध्याय १८) में इस प्रकार टीका की है, “भारत में ग्रीष्म ऋतु का अधिक स्वागत नहीं
होता क्योंकि गर्मी बहुत पड़ती है किन्तु वृन्दावन में हर व्यक्ति प्रसन्न था क्योंकि ग्रीष्म वसन्त के समान लग रही थी।”
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥