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श्लोक |
दृष्ट्वा प्रलम्बं निहतं बलेन बलशालिना ।
गोपा: सुविस्मिता आसन्साधु साध्विति वादिन: ॥ ३० ॥ |
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शब्दार्थ |
दृष्ट्वा—देखकर; प्रलम्बम्—प्रलम्बासुर को; निहतम्—मारा गया; बलेन—बलराम द्वारा; बल-शालिना—बलशाली; गोपा:— ग्वालबाल; सु-विस्मिता:—अत्यन्त चकित; आसन्—हुए; साधु साधु—“अति उत्तम,” “अति उत्तम”; इति—ये शब्द; वादिन:—कहते हुए ।. |
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अनुवाद |
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ग्वालबाल यह देखकर अत्यन्त चकित थे कि बलशाली बलराम ने किस तरह प्रलम्बासुर को मार डाला और वे सभी “बहुत खूब” “बहुत खूब” कहकर चिल्ला उठे। |
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