श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 18: भगवान् बलराम द्वारा प्रलम्बासुर का वध  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  10.18.31 
आशिषोऽभिगृणन्तस्तं प्रशशंसुस्तदर्हणम् ।
प्रेत्यागतमिवालिङ्‌‌ग्य प्रेमविह्वलचेतस: ॥ ३१ ॥
 
शब्दार्थ
आशिष:—आशीर्वाद; अभिगृणन्त:—भेंटें देते हुए; तम्—उन्हें; प्रशशंसु:—प्रशंसा की; तत्-अर्हणम्—उस सुपात्र को; प्रेत्य— मरकर; आगतम्—वापस आया हुआ; इव—मानो; आलिन्ग्य—आलिंगन करते हुए; प्रेम—प्रेमवश; विह्वल—भावविभोर; चेतस:—मन ।.
 
अनुवाद
 
 उन्होंने बलराम को खूब आशीर्वाद दिया और सभी तरह की प्रशंसा के पात्र होने के कारण उनकी खूब प्रशंसा की। उनके मन प्रेम से विभोर हो उठे और उन्होंने उनका इस प्रकार आलिंगन किया मानो वे मरकर लौटे हों।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥