प्रवालबर्हस्तबकस्रग्धातुकृतभूषणा: ।
रामकृष्णादयो गोपा ननृतुर्युयुधुर्जगु: ॥ ९ ॥
शब्दार्थ
प्रवाल—कोंपलें; बर्ह—मोर पंख; स्तबक—छोटे छोटे फूलों के गुच्छे; स्रक्—मालाएँ; धातु—तथा रंगीन खनिज (गेरू); कृत-भूषणा:—उन्हें अपना आभूषण बनाकर; राम-कृष्ण-आदय:—बलराम, कृष्ण इत्यादि; गोपा:—ग्वालबाल; ननृतु:— नाचने लगे; युयुधु:—लडऩे लगे; जगु:—गाने लगे ।.
अनुवाद
कोंपलों, मोरपंखों, मालाओं, फूल की कलियों के गुच्छों तथा रंगविरंगे खनिज पदार्थों से अपने आपको सजाकर बलराम, कृष्ण तथा उनके ग्वालमित्र नाचने लगे, कुश्ती लडऩे तथा गाने लगे।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥