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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 19: दावानल पान  » 
 
 
 
 
संक्षेप विवरण:  इस अध्याय में बतलाया गया है कि किस प्रकार कृष्ण ने मुञ्जारण्य में लगी महाग्नि से गौवों तथा ग्वालों की रक्षा की। एक दिन सारे ग्वालबाल खेल में मग्न हो गये तो गौवें...
 
श्लोक 1:  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : जब ग्वालबाल खेलने में पूरी तरह मग्न थे तो उनकी गौवें दूर चली गईं। अधिक घास के लोभ में तथा कोई उनकी देखभाल करनेवाला न होने से वे घने जंगल में घुस गईं।
 
श्लोक 2:  विशाल जंगल के एक भाग से दूसरे भाग में जाते हुए बकरियाँ, गौवें तथा भैंसें अन्तत: मूंज से आच्छादित क्षेत्र में घुस गईं। पास के जंगल की अग्नि की गर्मी से उन्हें प्यास लग पड़ी और वे कष्ट के कारण रँभाने लगीं।
 
श्लोक 3:  गौवों को सामने न देखकर, कृष्ण, राम तथा उनके ग्वालमित्रों को सहसा अपनी असावधानी पर पछतावा हुआ। उन बालकों ने चारों ओर ढूँढ़ा किन्तु यह पता न लगा पाये कि वे कहाँ चली गई हैं।
 
श्लोक 4:  तब बालकों ने गौवों के खुरों के चिन्हों तथा उनके खुरों तथा दाँतों से तोड़ी गई घास के तिनकों को देखकर उनके रास्ते का पता लगाना शुरू किया। सारे ग्वालबाल अत्यधिक चिन्तित थे क्योंकि वे अपनी जीविका का साधन खो चुके थे।
 
श्लोक 5:  अन्त में ग्वालबालों को अपनी बहुमूल्य गौवें मुञ्जा वन में मिलीं जो अपना रास्ता भटक जाने से चिल्ला रही थीं। तब प्यासे तथा थके-माँदे ग्वालबाल उन गौवों को घर के रास्ते पर वापस ले आये।
 
श्लोक 6:  भगवान् ने उन पशुओं को गरजते बादल की तरह गूँजती वाणी से पुकारा। अपने-अपने नामों की ध्वनि सुनकर गौवें अत्यधिक हर्षित हुईं और हुंकार भर कर भगवान् को उत्तर देने लगीं।
 
श्लोक 7:  सहसा चारों दिशाओं में महान् दावाग्नि प्रकट हुई जिससे जंगल के समस्त प्राणियों के नष्ट होने का संकट उत्पन्न हो गया। सारथी तुल्य वायु, अग्नि को आगे बढ़ाती जा रही थी और चारों ओर भयानक चिनगारियाँ निकल रही थीं। निस्सन्देह, इस महान् अग्नि ने अपनी ज्वालाओं रूपी जिह्वाओं को समस्त चल और अचर प्राणियों की और लपलपा दिया था।
 
श्लोक 8:  जब गौवों तथा ग्वालबालों ने चारों ओर से दावाग्नि को अपने ऊपर आक्रमण करते देखा तो वे बहुत डर गये। अत: वे रक्षा के लिए कृष्ण तथा बलराम के निकट गये जिस तरह मृत्यु भय से विचलित लोग भगवान् की शरण में जाते हैं। उन बालकों ने उन्हें इस प्रकार से सम्बोधित किया।
 
श्लोक 9:  [ग्वालबालों ने कहा] हे कृष्ण, हे कृष्ण, हे महावीर, हे राम, हे अमोघ शक्तिशाली, कृपा करके अपने उन भक्तों को बचायें जो जंगल की इस अग्नि से जलने ही वाले हैं और आपकी शरण में आये हैं।
 
श्लोक 10:  कृष्ण! निस्सन्देह आपके अपने मित्रों को तो नष्ट नहीं होना चाहिए। हे समस्त वस्तुओं की प्रकृति को जाननेवाले, हमने आपको अपना स्वामी मान रखा है और हम आपके शरणागत हैं।
 
श्लोक 11:  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : अपने मित्रों के ऐसे दयनीय वचन सुनकर भगवान् कृष्ण ने उनसे कहा : “तुम लोग, बस अपनी आँखें मूँद लो और डरो नहीं।”
 
श्लोक 12:  बालकों ने उत्तर दिया “बहुत अच्छा” और तुरन्त ही उन्होंने अपनी आँखें बन्द कर लीं। तब समस्त योगशक्ति के स्वामी भगवान् ने अपना मुख खोला और उस भयानक अग्नि को निगलकर अपने मित्रों को संकट से बचा लिया।
 
श्लोक 13:  ग्वालबालों ने अपनी आँखें खोलीं तो यह देखकर चकित हुए कि न केवल उन्हें तथा गौवों को उस विकराल अग्नि से बचा लिया गया है अपितु वे भाण्डीर वृक्ष के पास वापस ला दिये गये हैं।
 
श्लोक 14:  जब ग्वालबालों ने देखा कि भगवान् की अन्तरंगा शक्ति से प्रकट योगशक्ति द्वारा उन्हें दावाग्नि से बचाया जा चुका है, तो वे सोचने लगे कि कृष्ण अवश्य ही कोई देवता हैं।
 
श्लोक 15:  अब दोपहर ढल चुकी थी और बलराम सहित भगवान् कृष्ण ने गौवों को घर की ओर मोड़ा। अपनी वंशी को एक विशिष्ट ढंग से बजाते हुए कृष्ण अपने ग्वाल मित्रों के साथ गोपग्राम लौटे और ग्वालबाल उनके यश का गान कर रहे थे।
 
श्लोक 16:  गोविन्द को घर आते देखकर तरुण गोपियों को अत्यन्त आनंद प्राप्त हुआ क्योंकि उनकी संगति के बिना एक क्षण भी उन्हें सौ युगों के समान प्रतीत हो रहा था।
 
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