तेऽपश्यन्त: पशून् गोपा: कृष्णरामादयस्तदा ।
जातानुतापा न विदुर्विचिन्वन्तो गवां गतिम् ॥ ३ ॥
शब्दार्थ
ते—वे; अपश्यन्त:—न देखते हुए; पशून्—पशुओं को; गोपा:—ग्वालबाल; कृष्ण-राम-आदय:—कृष्ण, राम इत्यादि; तदा—तब; जात-अनुतापा:—पश्चात्ताप अनुभव करते हुए; न विदु:—नहीं जान पाये; विचिन्वन्त:—ढूँढ़ते हुए; गवाम्—गौवों को; गतिम्—रास्ता ।.
अनुवाद
गौवों को सामने न देखकर, कृष्ण, राम तथा उनके ग्वालमित्रों को सहसा अपनी असावधानी पर पछतावा हुआ। उन बालकों ने चारों ओर ढूँढ़ा किन्तु यह पता न लगा पाये कि वे कहाँ चली गई हैं।
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