यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमर्धमस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ “हे भरतवंशी! जब जब धर्म का ह्रास होता है और अधर्म की प्रधानता हो जाती है तब तब मैं अवतार लेता हूँ। मैं पुण्यात्माओं का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने एवं धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए युग-युग में अवतरित होता हूँ।” इस भौतिक जगत का पालन करने के पीछे भगवान् का उद्देश्य है कि वे हर एक को भगवद्धाम वापस जाने का अवसर प्रदान करें किन्तु दुर्भाग्यवश राजा तथा राजनेता भगवान् के उद्देश्य में बाधक बनते हैं। अत: सबकुछ ठीक करने के लिए भगवान् स्वयं या अपने अंशों के साथ प्रकट होते हैं। इसीलिए कहा गया है— गर्भं संचार्य रोहिण्यां देवक्या योगमायया। तस्या: कुक्षिं गत: कृष्णो द्वितीयोविबुधै स्तुत: ॥ “योगमाया की शक्ति से बलदेव को रोहिणी के गर्भ में स्थानान्तरित करने के बाद कृष्ण देवकी के गर्भ में प्रकट हुए।” यदुभि: स व्यरुध्यत। यदुवंशी सारे राजा भक्त थे किन्तु शाल्व जैसे अनेक शक्तिशाली असुर उन्हें सताने लगे। उस समय कंस का श्वसुर जरासन्ध अत्यधिक शक्तिशाली था अत: कंस ने यदुवंशी राजाओं को सताने में उसके संरक्षण का तथा असुरों की सहायता का लाभ उठाया। ये असुर स्वभावत: देवताओं की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली प्रतीत होते थे किन्तु अन्तत: भगवान् से सहायता प्राप्त होने से ये असुर पराजित हो गये और देवता विजयी रहे। |