अपनी अन्नरूपी सम्पदा से सारे खेत किसानों को प्रफुल्लित कर रहे थे। किन्तु वही खेत उन लोगों के हृदयों में पश्चात्ताप उत्पन्न कर रहे थे, जो इतने घमण्डी थे कि खेती के कार्य में नहीं लगना चाहते थे और यह नहीं समझ पाते थे कि किस तरह हर वस्तु भगवान् के अधीन है।
तात्पर्य
अधिक वर्षा होने पर बड़े शहरों में रहने वाले लोगों का घबड़ा उठना एक सामान्य बात है। वे या तो समझते नहीं या भूल चुके हैं कि यह वर्षा उन फसलों को लहलहायेगी जिनसे प्राप्त अन्न को वे खाएँगे। उन्हें खाना तो अच्छा लगता है किन्तु वे भूल जाते हैं कि भगवान् इस वर्षा से न केवल मनुष्यों को अन्नदान दे रहे हैं अपितु पौधौं, पशुओं तथा स्वयं पृथ्वी को पोषित कर रहे हैं। आधुनिक नजाकत भरे लोग कृषिकर्म में लगे व्यक्तियों पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं। अमरीकी लोकभाषा में सीधेसादे कम बुद्धिमान व्यक्ति को कभी कभी “किसान” (फार्मर) कहा जाता है। कुछ ऐसी सरकारी एजेंसियाँ भी हैं, जो कृषि-उत्पादन को सीमित रखना चाहती हैं क्योंकि कुछ पूँजीपति डरते रहते हैं कि इसका प्रभाव बाजार-मूल्यों पर पड़ सकता है। आधुनिक सरकारें नाना प्रकार के कृत्रिम एवं चालाकी के कार्यों में लगी रहती हैं जिससे विश्व-भर में, यहाँ तक कि संयुक्त राज्य अमरीका में भी, गरीबों में, अन्न की कमी पाई जाती है फिर भी कुछ सरकारें फसल न बोने के लिए किसानों को पैसा देती हैं। कभी कभी ये सरकारें पर्याप्त खाद्य वस्तुओं को समुद्र में फेंकवा देती हैं। इस तरह अहंवादी तथा अज्ञानी प्रशासन जो इतने घमंडी होते हैं कि भगवान् के नियमों का पालन नहीं करना चाहते या इतने बेसमझ होते हैं कि उन्हें मानना नहीं चाहते, लोगों में निराशा उत्पन्न करते रहेंगे जबकि ईशभावनाभावित सरकारें सबों को प्रचुर अन्न तथा सुख प्रदान करती रहेंगी।
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