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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  10.20.17 
लोकबन्धुषु मेघेषु विद्युतश्चलसौहृदा: ।
स्थैर्यं न चक्रु: कामिन्य: पुरुषेषु गुणिष्विव ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
लोक—सारे जगत के; बन्धुषु—मित्र; मेघेषु—बादलों में; विद्युत:—बिजली; चल-सौहृदा:—जिनकी मित्रता चलायमान है; स्थैर्यम्—स्थिरता; न चक्रु:—नहीं बनाये रखते; कामिन्य:—कामुक स्त्रियाँ; पुरुषेषु—पुरुषों में; गुणिषु—गुणवान; इव—जिस तरह ।.
 
अनुवाद
 
 यद्यपि बादल सारे जीवों के शुभैषी मित्र होते हैं लेकिन दुर्बलमना चंचल बिजली बादलों के एक समूह से दूसरे समूह में इस तरह गति करने लगी मानो गुणवान पुरुषों के प्रति भी विश्वासघात करनेवाली कामुक स्त्रियाँ हों।
 
तात्पर्य
 श्रील प्रभुपाद की टीका है : “वर्षा ऋतु में बिजली एक क्षण बादलों के एक समूह में प्रकट होती है, तो दूसरे क्षण दूसरे समूह में। इस घटना की तुलना उस कामुक स्त्री से की गई है, जो अपना चित्त किसी एक पुरुष पर नहीं टिका पाती। बादल की तुलना योग्य व्यक्ति से की गई है क्योंकि वह वर्षा द्वारा अनेक लोगों को जीवन-दान देता है। इसी तरह योग्य पुरुष अनेक प्राणियों का—यथा अपने परिवार अथवा व्यापार के अनेक काम करनेवालों का—भरण-पोषण करता है। दुर्भाग्यवश उसका सारा जीवन उसको तलाक देनेवाली पत्नी के कारण विक्षुब्ध हो सकता है और जब पति क्षुब्ध रहता है, तो सारा परिवार बरवाद हो जाता है, बच्चे अस्तव्यस्त हो जाते हैं, व्यापार ठप्प हो जाता है और हर काम पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अत: संस्तुति की जाती है कि जो स्त्री कृष्णभावनामृत में आगे बढऩा चाहती हो वह अपने पति के साथ शान्ति से रहे और पति-पत्नी किसी भी परिस्थिति में एक- दूसरे से अलग न हों। पति-पत्नी को मैथुन में संयम बरतना चाहिए और अपने मन को कृष्णभावनामृत में केन्द्रित करना चाहिए जिससे उनका जीवन सफल हो सके। आखिर इस भौतिक जगत में पुरुष को स्त्री की और स्त्री को पुरुष की आवश्यकता पड़ती है। जब वे मिल जाँय तो उन्हें कृष्णभावनामृत में शान्तिपूर्वक रहना चाहिए और बादलों के एक समूह से दूसरे समूह में चमकनेवाली बिजली की तरह चंचल नहीं होना चाहिए।”
 
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