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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  10.20.2 
गोपवृद्धाश्च गोप्यश्च तदुपाकर्ण्य विस्मिता: ।
मेनिरे देवप्रवरौ कृष्णरामौ व्रजं गतौ ॥ २ ॥
 
शब्दार्थ
गोप-वृद्धा:—बूढ़े ग्वाले; —तथा; गोप्य:—गोपियाँ; —भी; तत्—से; उपाकर्ण्य—सुनकर; विस्मिता:—आश्चर्यचकित; मेनिरे—विचार किया; देव-प्रवरौ—दो प्रतिष्ठित देवता; कृष्ण-रामौ—कृष्ण तथा बलराम दोनों भाई; व्रजम्—वृन्दावन में; गतौ—चोमे ।.
 
अनुवाद
 
 यह वर्णन सुनकर बड़े-बूढ़े गोप तथा स्त्रियाँ आश्चर्यचकित हो गये और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कृष्ण तथा बलराम अवश्य ही महान् देवता हैं, जो वृन्दावन में प्रकट हुए हैं।
 
 
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