जब मोरों ने बादलों को आते देखा तो वे उल्लासित हो गये और हर्षयुक्त अभिनन्दन में टेरने लगे जिस तरह गृहस्थ जीवन में दुखित लोग अच्युत भगवान् के शुद्ध भक्तों के आगमन पर हर्षित हो जाते हैं।
तात्पर्य
शुष्क ग्रीष्म ऋतु के बाद प्रथम गर्जन करते वर्षा के बादलों के आगमन के साथ ही मोर प्रफुल्लित हो उठते हैं और अत्यधिक सुख में नाचने लगते हैं। श्रील प्रभुपाद की टीका है : “हमें इसका व्यावहारिक अनुभव है कि कृष्णभावनामृत में सम्मिलित होने के पूर्व हमारे बहुत से शिष्य शुष्क और खिन्न थे किन्तु भक्तों के सम्पर्क में आने के बाद वे अब प्रफुल्लित मोरों की तरह नाच रहे हैं।”
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