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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  10.20.20 
मेघागमोत्सवा हृष्टा: प्रत्यनन्दञ्छिखण्डिन: ।
गृहेषु तप्तनिर्विण्णा यथाच्युतजनागमे ॥ २० ॥
 
शब्दार्थ
मेघ—बादलों का; आगम—आगमन होने से; उत्सवा:—उत्सव मनानेवाले; हृष्टा:—प्रसन्न हुए; प्रत्यनन्दन्—अभिनन्दन हेतु चिल्ला पड़े; शिखण्डिन:—मोरगण; गृहेषु—अपने घरों में; तप्त—दुखित; निर्विण्णा:—और तब सुखी बनते हैं; यथा—जिस तरह; अच्युत—अच्युत भगवान् के; जन—भक्तों के; आगमे—आगमन पर ।.
 
अनुवाद
 
 जब मोरों ने बादलों को आते देखा तो वे उल्लासित हो गये और हर्षयुक्त अभिनन्दन में टेरने लगे जिस तरह गृहस्थ जीवन में दुखित लोग अच्युत भगवान् के शुद्ध भक्तों के आगमन पर हर्षित हो जाते हैं।
 
तात्पर्य
 शुष्क ग्रीष्म ऋतु के बाद प्रथम गर्जन करते वर्षा के बादलों के आगमन के साथ ही मोर प्रफुल्लित हो उठते हैं और अत्यधिक सुख में नाचने लगते हैं। श्रील प्रभुपाद की टीका है : “हमें इसका व्यावहारिक अनुभव है कि कृष्णभावनामृत में सम्मिलित होने के पूर्व हमारे बहुत से शिष्य शुष्क और खिन्न थे किन्तु भक्तों के सम्पर्क में आने के बाद वे अब प्रफुल्लित मोरों की तरह नाच रहे हैं।”
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥