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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  10.20.23 
जलौघैर्निरभिद्यन्त सेतवो वर्षतीश्वरे ।
पाषण्डिनामसद्वादैर्वेदमार्गा: कलौ यथा ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
जल-ओघै:—बाढ़ के पानी से; निरभिद्यन्त—टूटे हुए; सेतव:—बाँध; वर्षति—जब वृष्टि होती है; ईश्वरे—इन्द्र; पाषण्डिनाम्— नास्तिकों के; असत्-वादै:—झूठे सिद्धान्तों से; वेद-मार्गा:—वेदों के पथ; कलौ—कलियुग में; यथा—जिस तरह ।.
 
अनुवाद
 
 जब इन्द्र ने अपनी वर्षा छोड़ भेजी तो बाढ़ के पानी से खेतों में सिंचाई के बाँध उसी तरह टूट गये जिस तरह कलियुग में नास्तिकों के सिद्धान्तों से वैदिक आदेशों की सीमाएँ टूट जाती हैं।
 
 
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