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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  10.20.27 
वनौकस: प्रमुदिता वनराजीर्मधुच्युत: ।
जलधारा गिरेर्नादादासन्ना दद‍ृशे गुहा: ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
वन-ओकस:—वनवासी कन्याएँ; प्रमुदिता:—हर्षित; वन-राजी:—जंगल के वृक्ष; मधु-च्युत:—मीठा रस टपकाते हुए; जल धारा:—झरने; गिरे:—पर्वतों पर; नादात्—उनकी प्रतिध्वनि से; आसन्ना:—निकट ही; ददृशे—देखा; गुहा:—गुफाएँ ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् ने हर्षित वनवासी कन्याओं, मधुर रस टपकाते वृक्षों तथा पर्वतीय झरनों को देखा जिनकी प्रतिध्वनि से सूचित हो रहा था कि पास ही गुफाएँ हैं।
 
 
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