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श्लोक 10.20.3  |
तत: प्रावर्तत प्रावृट् सर्वसत्त्वसमुद्भवा ।
विद्योतमानपरिधिर्विस्फूर्जितनभस्तला ॥ ३ ॥ |
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शब्दार्थ |
तत:—तत्पश्चात्; प्रावर्तत—शुरू हुई; प्रावृट्—वर्षा ऋतु; सर्व-सत्त्व—सारे जीवों की; समुद्भवा—उत्पत्ति की स्रोत; विद्योतमान—बिजली से चमकता; परिधि:—क्षितिज; विस्फूर्जित—(गरज से) विक्षुब्ध; नभ:-तला—आकाश ।. |
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अनुवाद |
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इसके बाद वर्षा ऋतु का शुभारम्भ हुआ जो समस्त जीवों को जीवनदान देती है। आकाश गर्जना से गूँजने लगा और क्षितिज पर बिजली चमकने लगी। |
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