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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  10.20.35 
सर्वस्वं जलदा हित्वा विरेजु: शुभ्रवर्चस: ।
यथा त्यक्तैषणा: शान्ता मुनयो मुक्तकिल्बिषा: ॥ ३५ ॥
 
शब्दार्थ
सर्व-स्वम्—पास की हर वस्तु; जल-दा:—बादल; हित्वा—त्यागकर; विरेजु:—चमकने लगे; शुभ्र—शुद्ध; वर्चस:—अपना तेज; यथा—जिस प्रकार; त्यक्त-एषणा:—समस्त इच्छाओं का परित्याग करनेवाले; शान्ता:—शान्त; मुनय:—मुनिगण; मुक्त- किल्बिषा:—बुरी लालसाओं से मुक्त ।.
 
अनुवाद
 
 बादल अपना सर्वस्व त्यागकर शुद्ध तेज से उसी तरह चमकने लगे जिस तरह शान्त मुनिगण अपनी समस्त भौतिक इच्छाएँ त्यागने पर पापपूर्ण लालसाओं से मुक्त हो जाते हैं।
 
तात्पर्य
 जब बादल जल से पूरित होते हैं, तो वे श्याम रंग के हो जाते हैं और सूर्य की किरणों को ढक लेते हैं जिस तरह अशुद्ध मनुष्य का भौतिक मन भीतर चमकनेवाली आत्मा को ढक लेता है। किन्तु जब बादल अपना जल बरसाकर सफेद पड़ जाते हैं तब वे चमकीली सूर्य की किरणों को प्रतिबिम्बित करते हैं जिस तरह कि भौतिक इच्छाओं तथा पापपूर्ण लालसाओं को त्याग देनेवाला व्यक्ति शुद्ध बन जाता है और तब वह अपनी आत्मा तथा अन्तस्थ परमात्मा को अच्छी तरह प्रतिबिम्बित करता है।
 
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