शरद ऋतु के आते ही समुद्र तथा सरोवर शान्त हो गये, उनका जल उस मुनि की तरह शान्त हो गया जो सारे भौतिक कार्यों से विरत हो गया हो और जिसने वैदिक मंत्रों का पाठ बन्द कर दिया हो।
तात्पर्य
मनुष्य भौतिक उन्नति, योगशक्ति तथा निर्विशेष मोक्ष के हेतु सामान्य वैदिक मंत्रों का पाठ करता है। किन्तु जब मुनि निजी इच्छाओं से पूर्णतया मुक्त होता है, तो वह एकमात्र परमेश्वर के दिव्य यश का उच्चारण करता है।
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