जिस तरह योग का अभ्यास करनेवाले अपनी चेतना को क्षुब्ध इन्द्रियों द्वारा बाहर निकलने से रोकने के लिए अपनी इन्द्रियों को कठोर नियंत्रण में रखते हैं उसी तरह किसानों ने अपने धान के खेतों से जल को बहकर बाहर न जाने देने के लिए मजबूत मेंड़ें उठा दीं।
तात्पर्य
श्रील प्रभुपाद की टीका है : “शरद में किसान अपने खेतों के भीतर का जल बचाने के लिए मजबूत मेडें़ बना देते हैं जिससे खेतों के भीतर का पानी बाहर न जा सके। चूँकि अब नई वर्षा की कोई आशा नहीं रहती अतएव वे खेत में जो भी पानी रहता है उसे बचाना चाहते हैं। इसी तरह जो व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार में वास्तव में बढ़ा-चढ़ा होता है, वह अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित करके अपनी शक्ति की रक्षा करता है। यह सलाह दी जाती है कि पचास वर्ष की आयु होने पर मनुष्य पारिवारिक जीवन से विरक्त हो ले और अपनी शारीरिक शक्ति का उपयोग कृष्णभावनामृत की उन्नति हेतु करे। जब तक मनुष्य अपनी इन्द्रियों को वश में करके उन्हें मुकुन्द की दिव्य प्रेमाभक्ति में नहीं लगाता तब तक मोक्ष की कोई सम्भावना नहीं रहती।”
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