जिस तरह कभी कभी महान् दयालु व्यक्ति समाज के सुख हेतु अपने जीवन या धन का उत्सर्ग कर देते हैं उसी तरह बादलों ने सूखी पृथ्वी पर जल बरसाया। यद्यपि इस तरह से बादल विनष्ट हो गये किन्तु पृथ्वी की खुशी के लिए उन्होंने मुक्तभाव से वर्षा की। श्रील प्रभुपाद ने भगवान् श्रीकृष्ण में इस श्लोक की टीका इस प्रकार की है : “वर्षा ऋतु में सारे देश के ऊपर प्रबल वायु झकझोरती है और जल बाँटने के लिए बादलों को एक से दूसरे स्थान तक ले जाती है। जब ग्रीष्म ऋतु के बाद पानी की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है, तो ये बादल एक धनी पुरुष की भाँति होते हैं। जिस तरह आवश्यकता पडऩे पर धनपति अपना सारा कोष खाली हो जाने पर भी, धन लुटा देता है उसी तरह ये बादल पृथ्वी की सतह पर अपना सारा जल वितरित करके स्वयं रिक्त हो जाते हैं।
कहा जाता है कि जब भगवान् रामचन्द्र के पिता महाराज दशरथ अपने शत्रुओं से लड़ते थे तो वे उनके पास इस तरह पहुँचते थे जैसे कोई किसान अनावश्यक पौधों और वृक्षों को उखाड़ता है। और जब दान देने की आवश्यकता पड़ती तो वे धन का वितरण इस तरह करते मानो बादल जल वितरित कर रहा हो। बादलों द्वारा जल का वितरण इतना उदार होता था कि इसकी तुलना महान् दानी व्यक्ति द्वारा धन वितरण से की जाती है। बादल से इतनी प्रचुर वर्षा होती है कि यह जल चट्टानों तथा पर्वतों पर और जहाँ आवश्यकता नहीं है उन सागरों पर भी बरसता है। बादल उस दानी व्यक्ति की तरह होता है, जो वितरण के लिए अपना कोष खोल देता है और पात्र या कुपात्र का भेदभाव नहीं करता। वह मुक्तहस्त दान देता है।”
अलंकारिक भाषा में बादलों में जो बिजली चमकती है, वह ऐसा प्रकाश है, जिससे वे पृथ्वी की दुखित अवस्था को देखते हैं। तेज बहनेवाली हवाएँ उनके गहरे साँस हैं जैसाकि किसी दुखी व्यक्ति में देखा जाता है। पृथ्वी की दुखित अवस्था देखकर बादल वायु में दयालु व्यक्ति की तरह काँपते हैं और इसलिए वे जल बरसाते हैं।