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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.20.7 
तप:कृशा देवमीढा आसीद् वर्षीयसी मही ।
यथैव काम्यतपसस्तनु: सम्प्राप्य तत्फलम् ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
तप:-कृशा—ग्रीष्म के ताप से दुर्बल; देव-मीढा—जलदेव द्वारा कृपापूर्वक छिडक़ी; आसीत्—हो गयी; वर्षीयसी—पूर्णतया पोषित; मही—पृथ्वी; यथा एव—जिस तरह; काम्य—इन्द्रिय तृप्ति पर आधारित; तपस:—तपस्वी का; तनु:—शरीर; सम्प्राप्य—प्राप्त करके; तत्—उस तपस्या का; फलम्—फल ।.
 
अनुवाद
 
 ग्रीष्म के ताप से पृथ्वी कृषकाय हो चुकी थी किन्तु वर्षा के देवता द्वारा तर किये जाने पर पुन: पूरी तरह हरीभरी हो गई। इस तरह पृथ्वी उस व्यक्ति के समान थी जिसका शरीर भौतिक कामना से की गई तपस्या के कारण कृषकाय हो जाता है किन्तु तपस्या का फल प्राप्त हो जाने पर वह पुन: पूरी तरह हष्ट पुष्ट हो उठता है।
 
तात्पर्य
 श्रील प्रभुपाद ने भगवान् श्रीकृष्ण में इस श्लोक की टीका इस प्रकार की है : “वर्षा के पूर्व सारी पृथ्वी सभी प्रकार की शक्तियों से क्षीण होकर अत्यन्त दुबली प्रतीत होने लगती है। वर्षा के बाद पृथ्वी की सम्पूर्ण सतह वनस्पति से हरीभरी हो उठती है और अत्यन्त स्वस्थ तथा बलिष्ठ दिखने लगती है। यहाँ पर भौतिक इच्छा की पूर्ति के लिए तपस्या करनेवाले व्यक्ति से इसकी तुलना की गई है। वर्षा ऋतु के बाद पृथ्वी की लहलहाती अवस्था की तुलना भौतिक इच्छाओं की पूर्ति होने से की गई है। कभी कभी जब कोई देश अवांछित सरकार द्वारा पराधीन बना लिया जाता है, तो सरकार पर नियंत्रण पाने के लिए व्यक्तियों तथा दलों को कठिन तपस्या करनी पड़ती है और जब वे उस पर नियंत्रण पा लेते हैं, तो वे खूब वेतन लेकर समृद्ध बन जाते हैं। यह भी वर्षा ऋतु में पृथ्वी के लहलहाने के तुल्य है। वस्तुत: मनुष्य को आध्यात्मिक आनन्द प्राप्त करने के लिए ही कठोर तपस्या करनी चाहिए। श्रीमद्भागवत में संस्तुति की गई है कि परमेश्वर के साक्षात्कार हेतु ही तपस्या करनी चाहिए। भक्ति में तपस्या स्वीकार करके मनुष्य अपने आध्यात्मिक जीवन को फिर से पा लेता है और आध्यात्मिक जीवन प्राप्त होते ही वह असीम आध्यात्मिक आनन्द का भोग करता है। किन्तु यदि कोई व्यक्ति किसी भौतिक लाभ के लिए तपस्या करता है, तो जैसाकि भगवद्गीता में कहा गया है, उसे जो फल प्राप्त होता है, वह क्षणिक होता है और केवल अल्प ज्ञानी ही ऐसे फल की कामना करते हैं।”
 
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