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अध्याय 21: गोपियों द्वारा कृष्ण के वेणुगीत की सराहना
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संक्षेप विवरण: इस अध्याय में बतलाया गया है कि किस प्रकार शरद ऋतु के आते ही कृष्ण ने वृन्दावन के मनोहर जंगल में प्रवेश किया और किस तरह उनकी बाँसुरी की ध्वनि सुनकर गोपियों ने प्रशंसा... |
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श्लोक 1: श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा : इस तरह वृन्दावन का जंगल स्वच्छ शारदीय जलाशयों से पूरित था और स्वच्छ जलाशयों में खिले कमल पुष्पों की सुगंधवाली वायु से शीतल था। अपनी गौवों तथा ग्वालसखाओं समेत अच्युत भगवान् ने उस जंगल में प्रवेश किया। |
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श्लोक 2: वृन्दावन के सरोवर, नदियाँ तथा पर्वत पुष्पित वृक्षों पर मँडराते उन्मत्त भौंरों तथा पक्षियों के समूहों से गुंजरित हो रहे थे। मधुपति (श्रीकृष्ण) ने ग्वालबालों तथा बलराम के संग उस जंगल में प्रवेश किया और गौवें चराते हुए वे अपनी वंशी बजाने लगे। |
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श्लोक 3: जब व्रजग्राम की तरुण स्त्रियों ने कृष्ण की वंशी का गीत सुना, जो काम उत्पन्न करनेवाला था, तो उनमें से कुछ स्त्रियाँ अपनी सखियों से एकान्त में कृष्ण के गुणों का बखान करने लगीं। |
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श्लोक 4: गोपियाँ कृष्ण के विषय में बातें करने लगीं किन्तु जब उन्होंने कृष्ण के कार्यकलापों का स्मरण किया तो हे राजन्, काम ने उनके मनों को विचलित कर दिया जिससे वे कुछ भी न कह पाईं। |
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श्लोक 5: अपने सिर पर मोरपंख का आभूषण, अपने कानों में नीले कर्णिकार फूल, स्वर्ण जैसा चमचमाता पीला वस्त्र तथा वैजयन्ती माला धारण किये भगवान् कृष्ण ने सर्वश्रेष्ठ नर्तक का दिव्य रूप प्रदर्शित करते हुए वृन्दावन के वन में प्रवेश करके अपने पदचिन्हों से इसे रमणीक बना दिया। उन्होंने अपने होंठों के अमृत से अपनी वंशी के छेदों को भर दिया और ग्वालबालों ने उनके यश का गान किया। |
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श्लोक 6: हे राजन्, जब व्रज की युवतियों ने सभी प्राणियों के मन को मोह लेने वाली कृष्ण की वंशी की ध्वनि सुनी तो वे एक-दूसरे का आलिंगन कर-करके उसका बखान करने लगीं। |
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श्लोक 7: गोपियों ने कहा : सखियो, जो आँखें नन्द महाराज के दोनों पुत्रों के सुन्दर मुखमण्डलों का दर्शन करती हैं, वे निश्चय ही भाग्यशाली हैं। ज्योंही वे दोनों अपने मित्रों से घिरकर तथा गौवों को अपने आगे आगे करके जंगल में प्रवेश करते हैं, तो वे अपने मुख में अपनी वंशियाँ धारण करके वृन्दावनवासियों पर प्यार-भरी चितवन से देखते हैं। जो आँखोंवाले हैं उनके लिए हमारी समझ में देखने की इससे बड़ी अन्य कोई वस्तु नहीं है। |
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श्लोक 8: तरह तरह के आकर्षक परिधानों के ऊपर अपनी मालाएँ डाले और मोरपंख, कमल, कमलिनी, आम की कोंपलों तथा पुष्पकलियों के गुच्छों से अपने को अलंकृत किये हुए कृष्ण तथा बलराम ग्वालबालों की टोली में शोभायमान हो रहे हैं। वे नाटक-मंच पर प्रकट होनेवाले श्रेष्ठ नर्तकों की तरह दिख रहे हैं और कभी कभी वे गाते भी हैं। |
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श्लोक 9: हे गोपियो, कृष्ण के अधरों का मुक्तरूप अमृतपान करने और हम गोपियों के हेतु जिनके लिए ही वास्तव में यह अमृत है केवल स्वादमात्र छोडऩे के लिए इस वंशी ने कौन-से शुभ-कृत्य किये होंगे। वंशी के बाप-दादे बाँस के वृक्षों ने हर्ष के अश्रु गिराये होंगे। जिस नदी के तट पर यह वृक्ष उत्पन्न हुआ होगा उस मातारूपी नदी ने हर्ष का अनुभव किया होगा; इसीलिए ये खिले हुए कमल के फूल उसके शरीर के रोमों की भाँति खड़े हुए हैं। |
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श्लोक 10: हे सखी, देवकी पुत्र कृष्ण के चरणकमलों का कोष पाकर वृन्दावन पृथ्वी की कीर्ति को फैला रहा है। जब मोर गोविन्द की वंशी सुनते हैं, तो वे मस्त होकर नाचने लगते हैं और जब अन्य प्राणी उन्हें पर्वत की चोटी से इस तरह नाचते देखते हैं, तो वे सभी स्तब्ध रह जाते हैं। |
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श्लोक 11: ये मूर्ख हिरनियाँ धन्य हैं क्योंकि ये नन्द महाराज के पुत्र के निकट पहुँच गई हैं, जो खूब सजेधजे हुए हैं और अपनी बाँसुरी बजा रहे हैं। सचमुच ही हिरनी तथा हिरन दोनों ही प्रेम तथा स्नेह-भरी चितवनों से भगवान् की पूजा करते हैं। |
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श्लोक 12: कृष्ण का सौन्दर्य तथा शील समस्त स्त्रियों के लिए उत्सव स्वरूप है। देवताओं की पत्नियाँ अपने पतियों के साथ विमानों में उड़ते हुए जब उन्हें देखती हैं और उनके गूँजते हुए वेणुगीत की ध्वनि सुनती हैं, तो उनके हृदय कामदेव द्वारा दहला दिये जाते हैं और वे इतनी मोहित हो जाती हैं कि उनके केशों से फूल गिर जाते हैं और उनकी करधनियाँ (पेटियाँ) ढीली पड़ जाती हैं। |
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श्लोक 13: गौवें अपने नलिकारूपी दोनों कानों को उठाये हुए कृष्ण के मुख से निकले वेणुगीत के अमृत का पान कर रही हैं। बछड़े अपनी माताओं के गीले स्तनों से निकले दूध को मुख में भरे भरे स्थिर खड़े रहते हैं जब वे अपने अश्रुपूरित नेत्रों से गोविन्द को अपने भीतर ले आते हैं और अपने हृदयों में उनका आलिंगन करते हैं। |
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श्लोक 14: अरी माई! कृष्ण का दर्शन करने हेतु इस जंगल में सारे पक्षी उडक़र वृक्षों की सुन्दर शाखाओं पर बैठ गये हैं। वे एकान्त में अपनी आँखें मूँदकर उनकी वंशी की मधुर ध्वनि को ही सुन रहे हैं और वे किसी अन्य ध्वनि की ओर आकृष्ट नहीं होते। सचमुच ये पक्षी महामुनियों की कोटि के हैं। |
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श्लोक 15: जब नदियाँ कृष्ण का वेणुगीत सुनती हैं, तो उनके मन उन्हें चाहने लगते हैं जिससे नदियों की धाराओं का प्रवाह खंडित हो जाता है और जल क्षुब्ध हो उठता है और भँवर बनकर घूमने लगता है। तत्पश्चात् नदियाँ अपनी लहरों रूपी भुजाओं से मुरारी के चरणकमलों का आलिंगन करती हैं और उन्हें पकडक़र उनपर कमलपुष्पों की भेंटें चढ़ाती हैं। |
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श्लोक 16: भगवान् कृष्ण बलराम तथा ग्वालबालों के संग में व्रज के समस्त पशुओं को चराते हुए ग्रीष्म की कड़ी धूप में भी निरन्तर अपनी बाँसुरी बजाते रहते हैं। यह देखकर आकाश के बादल ने प्रेमवश अपने को फैला लिया है। ऊँचे उठकर तथा फूल जैसी असंख्य जल की बूँदों से उसने अपने मित्र के लिए अपने ही शरीर को छाता बना लिया है। |
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श्लोक 17: वृन्दावन क्षेत्र की आदिवासी ललनाएँ लाल लाल कुंकुम चूर्ण से अंकित घास को देखकर कामोत्तेजित हो उठती हैं। कृष्ण के चरणकमलों के रंग से प्रदत्त यह चूर्ण मूलत: उनकी प्रेमिकाओं के स्तनों को अलंकृत करता था और जब उसे ही आदिवासी स्त्रियाँ अपने मुखों तथा स्तनों पर मल लेतीं हैं, तो उनकी सब चिंताए जाती रहती हैं। |
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श्लोक 18: यह गोवर्धन पर्वत समस्त भक्तों में सर्वश्रेष्ठ है। सखियो, यह पर्वत कृष्ण तथा बलराम के साथ ही साथ उनकी गौवों, बछड़ों तथा ग्वालबालों की सभी प्रकार की आवश्यकताओं—पीने का पानी, अति मुलायम घास, गुफाएँ, फल, फूल तथा तरकारियों—की पूर्ति करता है। इस तरह यह पर्वत भगवान् का आदर करता है। कृष्ण तथा बलराम के चरणकमलों का स्पर्श पाकर गोवर्धन पर्वत अत्यन्त हर्षित प्रतीत होता है। |
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श्लोक 19: हे सखियो, जब कृष्ण तथा बलराम अपने ग्वालमित्रों के साथ जंगल से होकर अपनी गौवें लेकर गुजरते हैं, तो वे अपने साथ दूध दोहन के समय गौवों की पिछली टाँगें बाँधने के लिए नोई लिये रहते हैं। जब भगवान् कृष्ण अपनी वंशी बजाते हैं, तो मधुर संगीत से चर प्राणी स्तब्ध रह जाते हैं और अचर वृक्ष आनन्दातिरेक से हिलने लगते हैं। निश्चय ही ये बातें अत्यन्त आश्चर्यजनक हैं। |
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श्लोक 20: इस तरह वृन्दावन के जंगल में पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् द्वारा विचरण से सम्बन्धित क्रीड़ामयी लीलाओं को एक-दूसरे से कहती हुई गोपियाँ उनके विचारों में पूर्णतया निमग्न हो गईं। |
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