श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 21: गोपियों द्वारा कृष्ण के वेणुगीत की सराहना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  10.21.6 
इति वेणुरवं राजन् सर्वभूतमनोहरम् ।
श्रुत्वा व्रजस्त्रिय: सर्वा वर्णयन्त्योऽभिरेभिरे ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
इति—इस प्रकार; वेणु-रवम्—वंशी की ध्वनि; राजन्—हे राजा परीक्षित; सर्व-भूत—सारे जीवों के; मन:-हरम्—मनों को हरनेवाला; श्रुत्वा—सुनकर; व्रज-स्त्रिय:—व्रज ग्राम में खड़ी स्त्रियों ने; सर्वा:—सभी; वर्णयन्त्य:—बखान करने में व्यस्त; अभिरेभिरे—एक-दूसरे का आलिंगन किया ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजन्, जब व्रज की युवतियों ने सभी प्राणियों के मन को मोह लेने वाली कृष्ण की वंशी की ध्वनि सुनी तो वे एक-दूसरे का आलिंगन कर-करके उसका बखान करने लगीं।
 
तात्पर्य
 इति शब्द इसका सूचक है कि कृष्ण का स्मरण करके अवाक् हुई गोपियाँ अपनी चेतना वापस पाकर कृष्ण की वंशी की ध्वनि का अत्यंत हर्षपूर्वक बखान करने लगीं। जब कुछ गोपियाँ जोर-जोर से बोलने लगीं तो अन्यों को भी लगा कि उनके हृदयों में भी ऐसा ही आह्लादपूर्ण स्नेह का भाव है, अत: सभी गोपियाँ तरुण कृष्ण के माधुर्य प्रेम से अभिभूत होकर एक-दूसरे का आलिंगन करने लगीं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥