श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  10.22.12 
तस्य तत् क्ष्वेलितं द‍ृष्ट्वा गोप्य: प्रेमपरिप्लुता: ।
व्रीडिता: प्रेक्ष्य चान्योन्यं जातहासा न निर्ययु: ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
तस्य—उसका; तत्—वह; क्ष्वेलितम्—मजाकिया व्यवहार; दृष्ट्वा—देखकर; गोप्य:—गोपियाँ; प्रेम-परिप्लुता:—भगवत्प्रेम में पूरी तरह निमग्न; व्रीडिता:—सकुचाई; प्रेक्ष्य—देखकर; च—तथा; अन्योन्यम्—एक-दूसरे को; जात-हासा:—हँसी आने के कारण; न निर्ययु:—नहीं निकलीं ।.
 
अनुवाद
 
 यह देखकर कि कृष्ण उनसे किस तरह ठिठोली कर रहे हैं, गोपियाँ उनके प्रेम में पूरी तरह निमग्न हो गईं और उलझन में होते हुए भी एक दूसरे की ओर देख-देखकर हँसने तथा परस्पर परिहास करने लगीं। लेकिन तो भी वे जल से बाहर नहीं आईं।
 
तात्पर्य
 श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ने इस श्लोक की व्याख्या इस प्रकार की है :गोपियाँ अत्यन्त सम्माननीय परिवार की थीं अत: उन्होंने कृष्ण से तर्क किया होगा “आप हमारे वस्त्रों को नदी के तट पर छोडक़र क्यों नहीं चले जाते?”

तब कृष्ण ने उत्तर दिया होगा, “लेकिन तुम तो अनेक हो अत: तुममें से कुछ लड़कियाँ अन्य लड़कियों के वस्त्र ले सकती हैं।”

गोपियों ने उत्तर दिया होगा, “हम ईमानदार हैं और कभी कोई चीज नहीं चुरातीं। हम पराये की सम्पत्ति को छूती तक नहीं।”

तब कृष्ण ने कहा होगा, “यदि ऐसा है, तो बाहर आकर अपने कपड़े ले लो। इसमें कौन सी कठिनाई है?”

“जब गोपियों ने कृष्ण के संकल्प को देखा तो वे प्रेम पूरित आनंद से भर गईं। यद्यपि वे सकुचाई थीं किन्तु कृष्ण का ऐसा आकर्षण देखकर अत्यन्त हर्षित थीं। कृष्ण उनसे इस तरह परिहास कर रहे थे मानो वे उनकी पत्नियाँ या प्रेमिकाएँ हों और गोपियाँ तो बस यही चाहती थीं। किन्तु वे सकुचाई थीं कि वे उन्हें नग्न देख जो रहे थे। किन्तु तो भी वे उनके परिहास युक्त शब्दों पर अपनी हँसी नहीं रोक पा रही थीं और वे भी परस्पर मजाक करने लगीं। एक गोपी ने दूसरे से निवेदन किया, “आगे जाओ, तुम सबसे पहले जाओ और हमें देखने दो कि कृष्ण तुम्हारे साथ क्या कोई चाल चलते हैं। तब फिर हम भी जायेंगी।”

 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥