श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ने इस श्लोक की व्याख्या इस प्रकार की है :गोपियाँ अत्यन्त सम्माननीय परिवार की थीं अत: उन्होंने कृष्ण से तर्क किया होगा “आप हमारे वस्त्रों को नदी के तट पर छोडक़र क्यों नहीं चले जाते?” तब कृष्ण ने उत्तर दिया होगा, “लेकिन तुम तो अनेक हो अत: तुममें से कुछ लड़कियाँ अन्य लड़कियों के वस्त्र ले सकती हैं।”
गोपियों ने उत्तर दिया होगा, “हम ईमानदार हैं और कभी कोई चीज नहीं चुरातीं। हम पराये की सम्पत्ति को छूती तक नहीं।”
तब कृष्ण ने कहा होगा, “यदि ऐसा है, तो बाहर आकर अपने कपड़े ले लो। इसमें कौन सी कठिनाई है?”
“जब गोपियों ने कृष्ण के संकल्प को देखा तो वे प्रेम पूरित आनंद से भर गईं। यद्यपि वे सकुचाई थीं किन्तु कृष्ण का ऐसा आकर्षण देखकर अत्यन्त हर्षित थीं। कृष्ण उनसे इस तरह परिहास कर रहे थे मानो वे उनकी पत्नियाँ या प्रेमिकाएँ हों और गोपियाँ तो बस यही चाहती थीं। किन्तु वे सकुचाई थीं कि वे उन्हें नग्न देख जो रहे थे। किन्तु तो भी वे उनके परिहास युक्त शब्दों पर अपनी हँसी नहीं रोक पा रही थीं और वे भी परस्पर मजाक करने लगीं। एक गोपी ने दूसरे से निवेदन किया, “आगे जाओ, तुम सबसे पहले जाओ और हमें देखने दो कि कृष्ण तुम्हारे साथ क्या कोई चाल चलते हैं। तब फिर हम भी जायेंगी।”