मा—मत; अनयम्—अनीति, अन्याय; भो:—हे कृष्ण; कृथा:—करो; त्वाम्—तुमको; तु—दूसरी ओर; नन्द-गोप—महाराज नन्द के; सुतम्—पुत्र को; प्रियम्—प्रिय; जानीम:—जानती हैं; अङ्ग—हे प्रिय; व्रज-श्लाघ्यम्—व्रज-भर में विख्यात; देहि— कृपा करके दे दीजिये; वासांसि—हमारे वस्त्र; वेपिता:—कँपकँपा रही हम सबों को ।.
अनुवाद
[गोपियों ने कहा]: हे कृष्ण, अन्यायी मत बनो, हम जानती हैं कि तुम नन्द के माननीय पुत्र हो और व्रज का हर व्यक्ति तुम्हारा सम्मान करता है। हमें भी तुम अत्यन्त प्रिय हो। कृपा करके हमारे वस्त्र लौटा दो। हम ठंडे जल में काँप रही हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥