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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  10.22.15 
श्यामसुन्दर ते दास्य: करवाम तवोदितम् ।
देहि वासांसि धर्मज्ञ नो चेद् राज्ञे ब्रुवाम हे ॥ १५ ॥
 
शब्दार्थ
श्यामसुन्दर—हे श्यामसुन्दर; ते—तुम्हारी; दास्य:—दासियाँ; करवाम—हम करेंगी; तव—तुम्हारे द्वारा; उदितम्—जो भी कहा जायेगा; देहि—दे दो; वासांसि—हमारे वस्त्र; धर्म-ज्ञ—हे धर्म के ज्ञाता; —नहीं तो; —निस्सन्देह; चेत्—यदि; राज्ञे—राजा से; ब्रुवाम:—हम कहेंगी; हे—हे कृष्ण ।.
 
अनुवाद
 
 हे श्यामसुन्दर, हम तुम्हारी दासियाँ हैं और तुम जो भी कहोगे करेंगी। किन्तु हमारे वस्त्र हमें लौटा दो। तुम धार्मिक नियमों के ज्ञाता हो और तुम यदि हमें हमारे वस्त्र नहीं दोगे, तो हम राजा से कह देंगी। मान जाओ।
 
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥