श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  10.22.16 
श्रीभगवानुवाच
भवत्यो यदि मे दास्यो मयोक्तं वा करिष्यथ ।
अत्रागत्य स्ववासांसि प्रतीच्छत शुचिस्मिता: ।
नो चेन्नाहं प्रदास्ये किं क्रुद्धो राजा करिष्यति ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-भगवान् उवाच—भगवान् ने कहा; भवत्य:—तुम सब; यदि—यदि; मे—मेरी; दास्य:—दासियाँ; मया—मेरे द्वारा; उक्तम्—कहा गया; वा—अथवा; करिष्यथ—तुम करोगी; अत्र—यहाँ; आगत्य—आकर; स्व-वासांसि—अपने अपने वस्त्र; प्रतीच्छत—चुन लो; शुचि—ताजी; स्मिता:—हँसी; न उ—नहीं तो; चेत्—यदि; न—नहीं; अहम्—मैं; प्रदास्ये—दे दूँगा; किम्—क्या; क्रुद्ध:—नाराज; राजा—राजा; करिष्यति—कर लेगा ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् ने कहा : यदि तुम सचमुच मेरी दासियाँ हो और मैं जो कहता हूँ उसे वास्तव में करोगी तो फिर अपनी अबोध भाव से मुस्कान भरकर यहाँ आओ और अपने अपने वस्त्र चुन लो। यदि तुम मेरे कहने के अनुसार नहीं करोगी तो मैं तुम्हारे वस्त्र वापस नहीं दूँगा। और यदि राजा नाराज भी हो जाये तो वह मेरा क्या बिगाड़ सकता है?
 
तात्पर्य
 श्रील प्रभुपाद टीका करते हैं “जब गोपियों ने देखा कि कृष्ण दृढ़ एवं अटल बने हुए हैं तब उनके पास उनकी आज्ञापालन करने के सिवाय कोई चारा न था।”
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥